Wednesday, May 17, 2017

ये मीडिया का संक्रमण काल है



मीडिया की साख पर जैसा संकट इस वक्त खड़ा है वैसा पहले कभी था क्या ? बहुत सारे लोग आपातकाल के दौरान की मीडिया पर सवाल खड़े करते हैं। लेकिन आपाताकाल का जितना विरोध तब की मीडिया ने किया था वैसा विरोध सरकार के किसी फैसले का शायद ही कभी हुआ हो। राजनीति  में मर्यादाओं की चर्चा होगी तो आपातकाल की भी चर्चा होगी। तब इंद्र कुमार गुजराल सूचना-प्रसारण मंत्री हुआ करते थे। कहा जाता है कि संजय गांधी ने तब उनसे कहा था कि दूरदर्शन और आकाशवाणी पर सरकार विरोधी खबरों की संख्या कम करवाएं। इंद्र कुमार गुजराल ने तत्काल अपना इस्तीफा टाइप करवाया और इंदिरा गांधी के पास भेज दिया था। इस्तीफे की चिट्ठी मिलते ही गुजराल तलब किए गए। इस्तीफे की वजह पूछी गई। गुजराल ने तब कहा था कि आपातकाल से तो देश बाहर निकल जाएगा लेकिन मीडिया पर सरकारी नियंत्रण हुआ तो लोकतंत्र का दम घुट जाएगा। इंदिरा मनाती रहीं, उनके सामने ही संजय गांधी को डांटा भी लेकिन गुजराल ने इस्तीफा वापस नहीं लिया। ये थी तब की राजनैतिक मर्यादा। आज इतनी हिम्मत किसी मंत्री में नहीं कि वो प्रधानमंत्री के फैसले के खिलाफ चूं तक बोल पाए, इस्तीफा तो बहुत दूर की बात है। हलांकि तमाम बिदिशों के बावजूद तब के पत्रकार और संपादकों ने नागिन डांस नहीं किया और आपातकाल के खिलाफ खूब लिखा, खूब बोला और फिर जेपी आंदोलन में शामिल होकर इंदिरा सरकार की चूलें भी हिलाईं। आज मीडिया में इतनी हिम्मत नहीं बची है कि वो सरकारी नीतियों, फैसलों की आलोचना कर सके या फिर उनसे हो रहे नुकसान की चर्चा कर सके। सरकार तो छोड़िए आलम ये है कि आज का मीडिया उस पार्टी का भोंपू बन गया लगता है जिसकी सरकार है। और जैसा कि प्रकृति का नियम है अपने मालिक के लिए दुम हिलाने वाले या भौंकने वाले को टुकड़ा मिलता है वैसे टुकड़े उछाले भी जा रहे हैं। इसी के साथ बेहद चालाकी से सारी नाकामी का ठीकरा मीडिया पर फोड़ा जा रहा है। आम आदमी के सवालों का तोप मीडिया की तरफ है। पहले महंगाई बढ़ने पर सरकार से सवाल पूछे जाते थे। अब मीडिया से पूछा जा रहा है कि 60 साल क्या सस्ते दिन थे जो अब महंगाई की बात हो रही है ? बेरोजगारी के मसले पर भी सवाल मीडिया से ही पूछे जा रहे हैं। लोग पूछ रहे हैं कि पिछले 60 साल में सबको रोजगार मिल गया था क्या जो अब बेरोजगारी पर खबर चला रहे हो ? इसी तरह के सवाल तमाम मसलों पर मीडिया से पूछे जाने लगे हैं। बेहद चालाकी से सरकार ने, सरकार चला रहे सियासी दल ने आम आदमी के तमाम सवालों को मीडिया की तरफ मोड़ दिया है। ऐसा माहौल गढ़ा जा रहा है जैसे महंगाई, बेरोजगारी, अशिक्षा, गरीबी, भुखमरी, अस्पतालों की बदहाली के लिए मीडिया ही जिम्मेदार है । और मीडिया का काम सवाल पूछना है ही नहीं बस सरकार की चाकरी करना है। ऐसा माहौल गढ़ा जा रहा है जिसमें सरकार से सवाल पूछने वाला देशद्रोही है। ऐसा माहौल गढ़ा जा रहा है जिसमें सरकार को कुछ करना न पड़े और उसकी नाकामी का ठीकरा या तो पिछले 60 वर्षों पर फूट जाए या फिर मीडिया पर।  बेहद चतुराई से तमाम असहमतियों को मीडिया की तरफ मोड़कर सरकार जवाबदेही मुक्त होती दिख रही है। मेरा मानना है कि ख़बर किसी के पक्ष या खिलाफ़ में नहीं होती है। खबर बस खबर होती है। मसलन लखनऊ में एक गाड़ी में रात भर किसी लड़की से हुआ बलात्कार खबर ही है। ये योगी सरकार की मुखालिफत नहीं है। नोटबंदी के बाद देश में बढ़ी बेरोजगारी खबर भर है किसी सरकार का विरोध नहीं है। लेकिन मौजूदा माहौल में ये सरकार विरोधी ख़बरें बताई जा रहीं हैं और ऐसी ख़बरे लिखने-बोलने वाले देशद्रोही बताए जा रहे हैं। तो मीडिया के लिए जो दौर अभी चल रहा है वैसा दौर पहले कभी रहा तो बताइएगा ज़रूर। मेरी जानकारी में इजाफा होगा और शायद तब मैं कुछ अच्छा लिख पाने के काबिल बन पाऊंगा। फिलहाल लोग मीडिया को भांड, दल्ला और न जाने और क्या-क्या कह रहे हैं।

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